
रायपुर — अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ दिनेश मिश्र ने सार्वजनिक रूप से चेतावनी दी है कि भूत-प्रेत, टोनही, जादू-टोना जैसी मान्यताओं का कोई वैज्ञानिक या वास्तविक अस्तित्व नहीं है। उनके अनुसार मनोविकार और अंधविश्वास के कारण ही कुछ लोग इन धाराओं पर भरोसा करते हैं और इस भ्रम को दूर करने के लिए स्वास्थ्य व चिकित्सा जागरूकता आवश्यक है।
डॉ दिनेश मिश्र ने कहा कि कैंसर, डायबिटीज जैसी शारीरिक बीमारियों के साथ-साथ मानसिक रोग भी वास्तविक बीमारियाँ हैं — इन्हें ‘भूत-प्रेत बाधा’ समझकर बाबाओं के पास नहीं भेजा जाना चाहिए। ऐसे रोगियों को भी अन्य बीमारियों की तरह चिकित्सकीय जांच व उचित उपचार की आवश्यकता होती है। झाड़-फूंक, मार-पीट या चंगाई सभा इन रोगों का इलाज नहीं कर सकतीं।
उन्होंने आगे कहा कि कुछ लोग कथावाचन और धर्म-सम्बन्धी शिक्षाओं को सकारात्मक रूप में जारी रखें, पर जिन-लोगों के पास लोग मदद मांगने आते हैं, उन्हें चमत्कार व टोनों के बहाने भ्रमित करना, भीड़ जुटाकर आर्थिक व मानसिक नुकसान पहुँचा देना अनुचित है। कथावाचन से लोगों को कर्म, मेहनत और ईमानदारी की सीख देनी चाहिए — लोगों की वास्तविक समस्याओं का इलाज चमत्कार नहीं कर सकता।
डॉ दिनेश मिश्र का कहना था कि सोशल मीडिया और चैनलों के माध्यम से चमत्कारिक कार्यक्रमों का प्रचार करके लाखों आस्थावान इकट्ठा कर लिए जाते हैं, पर बाद में वे वही पुरानी परिस्थितियों में जीवन बिताते दिखते हैं। ऐसे प्रचार और संकलित भीड़ के माध्यम से लोगों को झूठे भरोसे में डालना समाज के लिए खतरनाक है।
समिति अध्यक्ष ने शासन-प्रशासन पर भी जोरदार आगाह किया कि वे समय रहते संज्ञान लेकर जनता की सुरक्षा, स्वास्थ्य और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए आवश्यक कदम उठाएँ — ताकि अंधविश्वास के कारण होने वाले शारीरिक, मानसिक और आर्थिक नुकसान को रोका जा सके।
मुख्य बिंदु:
भूत-प्रेत व जादू-टोना वास्तविक नहीं, ये अंधविश्वास व मनोविकार से जन्मते हैं।
मानसिक रोगों को भी चिकित्सा के रूप में देखें; चंगाई या झाड़-फूंक समाधान नहीं।
कथावाचन ठीक है पर चमत्कार के नाम पर लोगों को भ्रमित करना गलत।
प्रशासन पर ज़िम्मेदारी — वैज्ञानिक चेतना और जनता की सुरक्षा के लिए कदम उठाये जाएँ।
डॉ दिनेश मिश्र
अध्यक्ष, अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति